बाल विकाश के सिद्धांत कोंन कोंन से है- principles of child development ctet
बाल विकास के सिद्धांत , के द्वारा बच्चो के सीखने के विषय मे व्याख्या करते है। कि आखिर बच्चा किस प्रकार सीखता है।
और बच्चा किस प्रकार अच्छे से सीख सकता है।वाल विकाश के द्वारा हमे बच्चे के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते है। कि बच्चे में आखिर किस प्रकार के गुण हैं। बच्चे में बहुत तरह के गुण पाए जाते है।हर प्रकार के बच्चे में कुछ विशेष प्रकार के गुण पाए जाते हैं। हम आपको बाल विकास के सिद्धांत के विषय में जानकारी प्रदान करेंगे । बाल विकास के निम्नलिखित सिद्धांत है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है सभी सिद्धांत परीक्षाओं में पूछे जा चुके है।
✳️निरंतरता का सिद्धांत:- इसका अर्थ है। कि विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।जो जन्म से शुरू होकर मृत्यु तक चलता रहता है। यह प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्यु तक के अंतर्गत चलती रहती है।
✳️ व्यक्तिक अंतर या व्यक्ति विभिन्नताओं का सिद्धांत
सिद्धांत का अर्थ है। कि प्रत्येक बालक का विकास विभिन्न विभिन्न हो सकता है ।अर्थात किसी बालक का विकास तीव्र गति से हो सकता है। और किसी बालक का विकास तेज गति से नहीं हो सकता है । किसी का हो सकता है । और किसी का नहीं भी हो सकता है। सभी बच्चों में विकास की प्रक्रिया अलग अलग है।
✳️ विकास के रंग की एकरूपता का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार विकास का अपना एक क्रम होता है । जो कभी नहीं बदला जा सकता । और सभी बातों का विकास इसी क्रम में होता है।
उदाहरण के लिए जैसे कि प्रत्येक बालक पहले रोना बाद में ध्वनि उत्पन्न करना ,फिर वाक्यांश बोलना फिर धीरे धीरे पूरे पूरे वाक्य बोलना सीख जाता है। कोई भी बच्चा पहली ही अवस्था में ठीक प्रकार से नहीं बोलता है। सभी बच्चे एक ही क्रम में ,धीरे-धीरे सीखते जाते हैं।
✳️ विकास की गति की भिन्न भिन्न दर का सिद्धांत
इस सिद्धांत का अर्थ है। कि विकास की विभिन्न अवस्थाओं पर विकास की गति भी बदलती रहती है। जैसे कि शेषअवस्था में यह गति तीव्र गति से होती है।इसके बाद यह गति थोड़ी धीमी होने लगती है। और फिर किशोर अवस्था में तीव्र हो जाती है। इस प्रकार विकास की गति घटती और बढ़ती रहती है।
✳️ विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर चलता है।
इसका अर्थ यह है। कि बालक शुरू में किसी भी क्रिया को सामान्य रूप को सीखता है। उसके बाद विशिष्ट क्रिया को सीखता है। जैसे कि बालक शुरू में किसी वस्तु को उठाने के लिए दोनों हाथों का सहारा लेता है ।और फिर धीरे-धीरे वह केवल एक अंगुली तथा एक अंगूठे की मदद से बारिक पेपर को भी उठाना सीख जाता है।
✳️ परस्पर संबंध का सिद्धांत
इसके अनुसार सभी प्रकार के विकास जैसे शारीरिक विकास सामाजिक विकास संज्ञानात्मक विकास संवेगात्मक विकास आदि एक दूसरे से संबंधित होते हैं और यह एक दूसरे के अकॉर्डिंग ही चलते हैं।
✳️ एकीकरण का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार बालक पहले संपूर्ण अंग को और फिर अंग के दूसरे भाव को चलना सीखता है ।
जैसे उदाहरण के लिए एक बालक पहले पूरे हाथ को फिर अंगुलियों को और फिर हाथ एवं उंगलियों को एक साथ चलना सीखता है।
✳️ विकास की दिशा के सिद्धांत
विकास की दिशा के सिद्धांत के अनुसार विकास एक ही दिशा में चलता है इसके दो भाग हैं
पहला भाग -मस्तादुनमुखी नियम--इसके अनुसार विकास सिर से पैर की ओर होता है। पहले बच्चा गर्दन संभालना सीखना है ।फिर बैठना ,फिर घुटनों के बल चलना सीखता है,फिर खड़े होना ,सहारे चलने और फिर बिना सहारे के चलना सीख जाता है।
दूसरा भाग - निकट -दूर नियम का सिद्धांत
इसके अनुसार रीड के पास के अंगों पर विकास पहले और दूर के अंगों का विकास बाद में होता है।
जैसे पहले कंधे का फिर हाथ का और फिर अंगुलियों का
विकास होता है ।
✳️ विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है
क्या विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है, इसका उत्तर है ,जी की जा सकती है ।
वह कैसे.. के अनुसार बालक की बुद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर ,उसके आगे बढ़ने की दिशा और रूप बारे में भविष्यवाणी की जाती है।
बालक का विकास कैसे होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस बालक के माता-पिता से वंशानुक्रम कौन से गुण मिले हो कैसे हो।
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